Skip to main content

Posts

Showing posts with the label तिनका और लढ्ढा.

तिनका और लढ्ढा

विषय- तिनका और लढ्ढा जब तेरी आंख में लट्ठा है तो तू अपने भाई से क्यों  कहता  है कि ला मैं तेरी आंख से तिनका निकाल दूं! (मत्ती 7:1-5) भैंस ने गाय से कहा तेरी पूंछ काली है परंतु गाय ने कहा तू पूरी काली है इंसान की बहुत बड़ी आदत बन चुकी है कि दूसरे की कमी निकालना जबकि उसको अपनी कमी कभी नहीं दिखती और पूरे संसार में आज यही दिख रहा है हर एक जाति का व्यक्ति दूसरे जाति की कमी निकाल रहे दूसरे के धर्म की कमी निकाल रहे है लेकिन वह अपनी जाति  अपने धर्म की कमी नहीं देखता जबकि हमारा धर्म केवल और केवल मानवता है और इंसानियत है कि हमें हर इंसान के लिए भलाई देखनी चाहिए और उसकी कमियों को सहज तरीके से बता कर उसको सही जीवन जीने की कला को सिखाना चाहिए!  लेकिन कला को सिखाने की वजह हम दोष लगाना ज्यादा पसंद करते हैं आज का इंसान दूसरे इंसान को सुधारने में लगा है दूसरे को सुधारना अच्छा है परंतु पहले अपने को सुधारना चाहिए!  कबीर दास कवि ने कहा कि बुरा जो देखन मैं चला बुरा ना देखा कोई जब दिल खोजा आपना तो मुझसे बुरा न कोई सब उनको संत कबीर भक्त कबीर कहते थे परंतु वह अपने को बुरा इंसान कहते थे...