मिस्र पर भेजी गई विपत्तियों का रहस्य|💒
ईश्वरत्व का अस्तित्व --- इब्रानियों की पत्री ११.६ में लिखा है ---- विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है , क्योंकि पर्मेश्वर के पास आनेवाले को , विश्वास करना चाहिए की वो है , और अपने खोजने वालों को , प्रतिफल देता है| इस पद की सबसे महत्वपूर्ण बात है , पर्मेश्वर का अस्तित्व| ग़ालिब ने क्या ख़ूब कहा है –कुछ ना था तो ख़ुदा था , कुछ ना होता तो ख़ुदा होता| संसार की हर वास्तु का अस्तित्व , पर्मेश्वर के अस्तिव के कारण है| वो है , इसलिए ये आकाश और धरती हैं| भजन १९.१—२ में लेखक कहता है ---आकाश ईश्वर की महिमा का वर्णन कर रहा है , और आकाशमंडल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है| दिन दिन से बातें करता है , और रात रात को ज्ञान सिखाती है ; ना तो कोई बोली है ,और ना कोई भाषा , जहाँ उनका शब्द सुनाई नहीं देता| जब आप स्रष्टि को निहारते हैं , उसकी अद्भुत रचना , ईश्वर के अस्तित्व की ओर इशारा करती है| यूनानी दार्शनिक , अरस्तु का कथन इस विषय पर प्रकाश डालता है| अरस्तु कहता है –जब मैं चाँद , सितारों को अपनी परिधि में घूमते हुए देखता हूं , जब मैं मौसमों को अपने समय में आते जाते देखता हूं , तो यह मान लेता हूं की , इसके पीछे कोई महामास्तिष्क कार्य कर रहा है| विश्वास करने के अनेकों कारण हो सकते हैं ; लेकिन विश्वास का एक ही मूल भूत आधार है , ईश्वर का अस्तित्व| मिस्र पर भेजी गईं दस विपत्त्तियों में , ईश्वरत्व का रहस्य छिपा है|इस्रायली चारसों वर्षों से मिस्र में गुलामी की ज़िन्दगी बिता रहे थे| वो लगभग अपने पर्मेश्वर को भूल से गए थे| दूसरी और मिस्र का राजा , एक महान शक्ति माना जाता था| फिरौन को मिस्री , ईश्वर का प्रतिनिधि मानते थे| धीरे धीरे फिरौन अपने आप में एक ईश्वर माना जाने लगा| मिस्र पर दस विपतियों को भेजने के पीछे , तीन प्रमुख कारण थे| पहला कारण ---ईश्वरत्व का प्रमाण ---पर्मेश्वर ने मिस्र पर कुछ ऐसी विपत्तियां भेजी , जो उसके ईश्वरत्व को प्रमाणित करती हैं| दूसरा कारण ---इस्रायलियों को विश्वास दिलाना ---पर्मेश्वर जानता था , भविष्य में क्या होने वाला है ; इसलिए वह इस्रायलियों को मिस्र की दासता से मुक्त करने के पहले , उन्हें विश्वास दिलाना चाहता था , की वोही सर्वशक्तिमान ईश्वर है| मिस्रियों को विश्वास दिलाना की वह , सर्वशक्तिमान ईश्वर है---मिस्रियों के अपने देवी देवता थे , जिपर उनका अटूट विश्वास था| वास्तव में दस विपत्तियां , ईश्वरत्व की जंग थी|
फिरौन का पर्मेश्वर को चुनौती देना ---यह विवाद प्रारंभ होता है , मिस्र के राजा फिरौन की चुनौती से| निर्गमन ५.१-२ में लिखा है ---इसके पश्चात मूसा और हारून ने जाकर फिरौन से कहा , इस्रायल का पर्मेश्वर , यहोवा यूं कहता है , की मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे , की वे जंगल में जा कर मेरे लिए पर्व करें| फिरौन ने कहा , यहोवा कौन है? की मैं उसका वचन मान कर इस्रायलियों को जाने दूं| मैं यहोवा को नहीं जानता , और मैं इस्रायलियों को नहीं जाने दूंगा| फिरौन के अपने देवी देवता थे , वह स्वयं ईश्वर का प्रतिनिधि था , राजे महाराजे आज्ञा देते हैं , किसी की आज्ञा नहीं मानते| फिरौन को ऐसा लगा , जैसे उसके अस्तित्व को चुनौती दी जा रही है| कोई फिरौन को आदेश दे , यह उसके सोच के बाहर था| दूसरी ओर , फिरौन की चुनौती , पर्मेश्वर का अपमान था| फिरौन ने स्पष्ट शब्दों में कहा , यहोवा कौन है ; मैं यहोवा को नहीं जानता| पर्मेश्वर ने कहा मेरी प्रजा जो जाने दे , जबकि उस समय इस्रायली मिस्र के गुलाम थे| वो फिरौन की प्रजा थे , और फिरौन उनका राजा था| दस विपत्तियां , इसी अहम् के टकराव का परिणाम थीं|मूसा की यह बात सुनते ही , फिरौन भड़क गया , और उसने इस्रायलियों पर अत्याचार और बढ़ा दिए| फिरौन ने एक नया आदेश ज़ारी किया , अब इस्रायलियों को ईंट बनाने के लिए , पुआल नहीं दिया जाएगा| उन्हें स्वयं ही खेतों में जाकर पुआल एकत्र करना होगा| परन्तु इंटों के बनाये जाने की गिनती कम नहीं की जाएगी| इस्रायली पहले ही समस्या में थे , फिरौन ने उनकी समस्या को और अधिक बढ़ा दिया|इस्रायली मूसा और हारून से नाराज़ हो गए| उनका विश्वास पहले से टूटा हुआ था , फिरौन की आज्ञा से वो और अधिक निराश हो गए| मूसा को भी ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी| फिरौन के इस कदम से मूसा के विश्वास को ठेस पहुंचना निश्चित था| निर्गमन ---५.२२ में लिखा है ---तब मूसा ने यहोवा के पास लौट कर कहा , हे प्रभू पर्मेश्वर आपने इस प्रजा के साथ ऐसी बुराई क्यों की? और आपने मुझे क्यों भेजा? मूसा बचपन से मिस्री महल में पला बढ़ा था , और वो फिरौन की शक्ति और क्रोध से भलीभांति परचित था| फिरौन ने जो आदेश दिया था , उसे वापस लिया जाना , सर्वथा असंभव था| इस्रायलियों के विश्वास के साथ , मूसा का विश्वास भी , टूट कर चकनाचूर हो गया था| मूसा और इस्रायली , दोनों ही मिस्र के राजा फिरौन से टकराने के परिणामों से परचित थे| मूसा के प्रश्नों के उत्तर में , पर्मेश्वर ने मूसा से कहा , अब तू देखेगा की मैं , फिरौन से क्या करूंगा? जिससे वह उनको बरबस निकालेगा { निर्गमन ६.१ }मूसा ने पर्मेश्वर का सन्देश , इस्रायलियों को सुना दिया| निर्गमन ६.९ में लिखा है ---ये बातें मूसा ने इस्रायलियों को कह सुनाईं , परन्तु उन्होंने मन की बेचैनी और दासत्व की क्रूरता के कारण उनकी ना सुनी| क्रिया की प्रतिक्रिया बहुत निराशाजनक थी|दस विपत्तियों का गहन अध्यन करने के पूर्व , निर्गमन १२.१२ को समझना नितांत आवश्यक है| जहाँ पर्मेश्वर कहता है ---मैं उस रात मिस्र के बीच से होकर गुज़रुंगा , और मिस्र देश के क्या मनुष्य और क्या पशु , सबके पहलौठों को मरूँगा ; और मिस्र के सारे देवी देवताओं को भी दण्ड दूंगा , मैं तो यहोवा हूं| दस विपतियां , पर्मेश्वर के ईश्वरत्व को सिद्ध करने का एक साधन हैं|
दस विपत्तियां और उनके परिणाम --- पहली विपत्ति –नील नदी का जल , लहू बनाया जाना ---निर्गमन ७.१७ में मूसा ने फिरौन से कहा –यहोवा यूं कहता है , इससे तू जान लेगा की मैं ही पर्मेश्वर हूं , देख मैं अपनी लाठी को नील नदी के जल पर मारूंगा , और जल लहू बन जायेगा| नील नदी को मिस्र की जीवन रेखा मना जाता है|उस युग में मिस्र की सम्रद्धि का एक मात्र कारण , नील नदी थी| पर्मेश्वर ने सबसे पहला प्रहार मिस्र की जीवन रेखा पर किया| मिस्री नील नदी की पूजा करते थे| हैपी और आइसिस नील नदी की देवियाँ मानी जाती थीं| नील नदी को लहू बना कर पर्मेश्वर ने , फिरौन को सीधा सन्देश दिया| पहला –पर्मेश्वर उसके राज्य में भी कार्य कर सकता है| दूसरा –आर्थिक हानि की सामर्थ| नील नदी , मिस्र के भी लिए जीवन रेखा थी| नील नदी के जल का लहू बन जाना , उनके आर्थिक स्रोतों पर आघात जैसा था| तीसरा –धार्मिक आघात --- यदि आइसिस और हैपी देवी हैं , तो उनको ये चुनौती है की वो , नील नदी के जल को अपनी ताक़त से पुनः जल बना दें| परन्तु ऐसा नहीं हुआ| फिरौन के जादूगरों ने भी , ठीक वैसा ही किया| उन्होंने अपने तंत्र मन्त्र से दूसरे जलाशयों को लहू बना दिया| और पर्मेश्वर ने ऐसा होने दिया
दूसरी विपत्ति ---मेंढकों का पूरे मिस्र पर छा जाना ---निर्गमन ८.२—३ में लिखा है ---यदि तू उन्हें ना जाने देगा तो सुन ,मैं मेंढक भेज कर तेरे सारे देश को हानि पहुँचाने वाला हूं| और नील नदी मेंढकों से भर जाएगी , और तेरे भवन और तेरे बिछौने पर और तेरे कर्मचारियों के घरों और तेरी प्रजा पर और तेरे तंदूर और कठौतियों पर चढ़ जाएंगे| जब हारून ने अपनी लाठी जलाशयों की ओर उठाई तो वैसा ही हुआ| समस्त मिस्र मेंढकों से भर गया| मिस्र के जादूगरों ने भी ठीक वैसा ही किया| हेकेट मिस्रियों का देवता माना जाता था| यह मेंढक के सर वाला देवता था , जिसे जन्म का देवता भी माना जाता था| इस विपत्ति से बचने के लिए निश्चित ही मिस्रियों ने अपने देवता से मिन्नत की होगी| पहले पर्मेश्वर ने हेपी और आइसिस देवियों और अब हेकेट देवता पर आक्रमण किया था| प्रश्न केवल यह था सच्चा ईश्वर कौन है पद ७ में लिखा है –फिरौन ने मूसा को बुला कर , उससे निवेदन किया की , यहोवा से बिनती करो की वह मेंढकों को मिस्र से दूर करे| इसके पूर्व फिरौन ने कहा था , यहोवा कौन है , मैं नहीं जानता| दूसरी विपत्ति का प्रभाव यह हुआ की , फिरौन पर्मेश्वर के सामने झुकने को मज़बूर हो गया| वह जान गया की इस विपत्ति को लाने वाला और उससे बचाने वाला , केवल यहोवा पर्मेश्वर है|
तीसरी विपत्ति ---माटी की धूल से कुटकी बनाया जाना ---निर्गमन ८.१६ में पर्मेश्वर ने मूसा से कहा , हारून को आज्ञा दे की तू अपनी लाठी बढ़ा कर , धूल पर मर जिससे वह मिस्र भर में कुटकीयां बन जाए| धूल से कुछ भी बनाने की शक्ति केवल पर्मेश्वर में है| सबसे पहले पर्मेश्वर ने उत्पत्ति में माटी की धूल से , आदम की राचन की| मिस्र में पर्मेश्वर ने धूल से कुटकीयां बना दीं| यह उसकी समर्थ का प्रमाण था| मिस्रियों के दो और देवता थे ,पहला नाट और दूसरा सेत| इन दोनों को मरुस्थल का देवता माना जाता था| इन दोनों को पर्मेश्वर को चुनौती थी , यदि वे वास्तव में ईश्वर हैं , तो मिस्रियों को बचा लें| निर्गमन ८.१८ में लिखा है –मिस्री जादूगरों ने वैसा ही करना चाहा , परन्तु यह उनकी शक्ति के बाहर था| जादूगरों ने फिरौन से कहा , यह तो पर्मेश्वर के हांथ का काम है| उन्होंने यह नहीं कहा की यह हमारे देवताओं का काम है , लेकिन उन्होंने मान लिया की यह पर्मेश्वर का काम है| और हम अपने तंत्र मन्त्र से उसका सामना नहीं कर सकते| सबसे पहला विश्वास , जादूगरों में पैदा हुआ| अंधकार की ताकतें आज भी काम करती हैं , और पर्मेश्वर की सत्ता को चुनौती देती हैं| प्रेरितों के काम की किताब में भी , ऐसे ही तीन वर्णन मिलते हैं| पहला --प्रेरितों के काम ९. ९—१० में लिखा है –इसके पहले उस शहर में शिमौन नामक एक मनुष्य था , जो जादू टोना करके सामरिया के लोगों को चकित करता और अपने आप को एक बड़ा पुरुष बताता था| छोटे , बड़े सब उसका सम्मान करके कहते थे , यह मनुष्य पर्मेश्वर की वह शक्ति है जो महान कहलाती है| शिमौन ने पर्मेश्वर की सामर्थ के काम देखे, और पद १३ में लिखा है –तब शिमौन ने स्वयं भी विश्वास किया , और बप्तिस्मा लेकर फिलिप्पुस के साथ रहने लगा| दूसरा वर्णन प्रेरितों के काम १३.४—१२ में मिलता है| इलिमास नामक एक यहूदी टोंन्हा और झूठा भविष्यवक्ता , लोगों को विश्वास करने से रोकता था| पद ११ में पौलूस ने इलिमास से कहा , अब देख प्रभू का हांथ तुझपर लगा है , और तू कुछ समय तक अंधा रहेगा , और सूर्य को नहीं देखेगा| तीसरा उदाहरण प्रेरितों के काम १९. १९ में मिलता है , जहाँ इस प्रकार लिखा है – जादू करने वालों में से बहुतेरों ने , अपनी पोथियों इकट्ठी करके सबके सामने जला दीं ; और जब उनकी क़ीमत जोड़ी गई तो , पचास हज़ार चांदी के सिक्कों के बराबर निकली| अन्धकार की ताकतें आज भी , पर्मेश्वर की सामर्थ का सामना नहीं कर पाती हैं| उन्हें पर्मेश्वर के सामने , घुटने टेकने ही पड़ते हैं|
ईश्वरत्व का अस्तित्व --- इब्रानियों की पत्री ११.६ में लिखा है ---- विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है , क्योंकि पर्मेश्वर के पास आनेवाले को , विश्वास करना चाहिए की वो है , और अपने खोजने वालों को , प्रतिफल देता है| इस पद की सबसे महत्वपूर्ण बात है , पर्मेश्वर का अस्तित्व| ग़ालिब ने क्या ख़ूब कहा है –कुछ ना था तो ख़ुदा था , कुछ ना होता तो ख़ुदा होता| संसार की हर वास्तु का अस्तित्व , पर्मेश्वर के अस्तिव के कारण है| वो है , इसलिए ये आकाश और धरती हैं| भजन १९.१—२ में लेखक कहता है ---आकाश ईश्वर की महिमा का वर्णन कर रहा है , और आकाशमंडल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है| दिन दिन से बातें करता है , और रात रात को ज्ञान सिखाती है ; ना तो कोई बोली है ,और ना कोई भाषा , जहाँ उनका शब्द सुनाई नहीं देता| जब आप स्रष्टि को निहारते हैं , उसकी अद्भुत रचना , ईश्वर के अस्तित्व की ओर इशारा करती है| यूनानी दार्शनिक , अरस्तु का कथन इस विषय पर प्रकाश डालता है| अरस्तु कहता है –जब मैं चाँद , सितारों को अपनी परिधि में घूमते हुए देखता हूं , जब मैं मौसमों को अपने समय में आते जाते देखता हूं , तो यह मान लेता हूं की , इसके पीछे कोई महामास्तिष्क कार्य कर रहा है| विश्वास करने के अनेकों कारण हो सकते हैं ; लेकिन विश्वास का एक ही मूल भूत आधार है , ईश्वर का अस्तित्व| मिस्र पर भेजी गईं दस विपत्त्तियों में , ईश्वरत्व का रहस्य छिपा है|इस्रायली चारसों वर्षों से मिस्र में गुलामी की ज़िन्दगी बिता रहे थे| वो लगभग अपने पर्मेश्वर को भूल से गए थे| दूसरी और मिस्र का राजा , एक महान शक्ति माना जाता था| फिरौन को मिस्री , ईश्वर का प्रतिनिधि मानते थे| धीरे धीरे फिरौन अपने आप में एक ईश्वर माना जाने लगा| मिस्र पर दस विपतियों को भेजने के पीछे , तीन प्रमुख कारण थे| पहला कारण ---ईश्वरत्व का प्रमाण ---पर्मेश्वर ने मिस्र पर कुछ ऐसी विपत्तियां भेजी , जो उसके ईश्वरत्व को प्रमाणित करती हैं| दूसरा कारण ---इस्रायलियों को विश्वास दिलाना ---पर्मेश्वर जानता था , भविष्य में क्या होने वाला है ; इसलिए वह इस्रायलियों को मिस्र की दासता से मुक्त करने के पहले , उन्हें विश्वास दिलाना चाहता था , की वोही सर्वशक्तिमान ईश्वर है| मिस्रियों को विश्वास दिलाना की वह , सर्वशक्तिमान ईश्वर है---मिस्रियों के अपने देवी देवता थे , जिपर उनका अटूट विश्वास था| वास्तव में दस विपत्तियां , ईश्वरत्व की जंग थी|
फिरौन का पर्मेश्वर को चुनौती देना ---यह विवाद प्रारंभ होता है , मिस्र के राजा फिरौन की चुनौती से| निर्गमन ५.१-२ में लिखा है ---इसके पश्चात मूसा और हारून ने जाकर फिरौन से कहा , इस्रायल का पर्मेश्वर , यहोवा यूं कहता है , की मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे , की वे जंगल में जा कर मेरे लिए पर्व करें| फिरौन ने कहा , यहोवा कौन है? की मैं उसका वचन मान कर इस्रायलियों को जाने दूं| मैं यहोवा को नहीं जानता , और मैं इस्रायलियों को नहीं जाने दूंगा| फिरौन के अपने देवी देवता थे , वह स्वयं ईश्वर का प्रतिनिधि था , राजे महाराजे आज्ञा देते हैं , किसी की आज्ञा नहीं मानते| फिरौन को ऐसा लगा , जैसे उसके अस्तित्व को चुनौती दी जा रही है| कोई फिरौन को आदेश दे , यह उसके सोच के बाहर था| दूसरी ओर , फिरौन की चुनौती , पर्मेश्वर का अपमान था| फिरौन ने स्पष्ट शब्दों में कहा , यहोवा कौन है ; मैं यहोवा को नहीं जानता| पर्मेश्वर ने कहा मेरी प्रजा जो जाने दे , जबकि उस समय इस्रायली मिस्र के गुलाम थे| वो फिरौन की प्रजा थे , और फिरौन उनका राजा था| दस विपत्तियां , इसी अहम् के टकराव का परिणाम थीं|मूसा की यह बात सुनते ही , फिरौन भड़क गया , और उसने इस्रायलियों पर अत्याचार और बढ़ा दिए| फिरौन ने एक नया आदेश ज़ारी किया , अब इस्रायलियों को ईंट बनाने के लिए , पुआल नहीं दिया जाएगा| उन्हें स्वयं ही खेतों में जाकर पुआल एकत्र करना होगा| परन्तु इंटों के बनाये जाने की गिनती कम नहीं की जाएगी| इस्रायली पहले ही समस्या में थे , फिरौन ने उनकी समस्या को और अधिक बढ़ा दिया|इस्रायली मूसा और हारून से नाराज़ हो गए| उनका विश्वास पहले से टूटा हुआ था , फिरौन की आज्ञा से वो और अधिक निराश हो गए| मूसा को भी ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी| फिरौन के इस कदम से मूसा के विश्वास को ठेस पहुंचना निश्चित था| निर्गमन ---५.२२ में लिखा है ---तब मूसा ने यहोवा के पास लौट कर कहा , हे प्रभू पर्मेश्वर आपने इस प्रजा के साथ ऐसी बुराई क्यों की? और आपने मुझे क्यों भेजा? मूसा बचपन से मिस्री महल में पला बढ़ा था , और वो फिरौन की शक्ति और क्रोध से भलीभांति परचित था| फिरौन ने जो आदेश दिया था , उसे वापस लिया जाना , सर्वथा असंभव था| इस्रायलियों के विश्वास के साथ , मूसा का विश्वास भी , टूट कर चकनाचूर हो गया था| मूसा और इस्रायली , दोनों ही मिस्र के राजा फिरौन से टकराने के परिणामों से परचित थे| मूसा के प्रश्नों के उत्तर में , पर्मेश्वर ने मूसा से कहा , अब तू देखेगा की मैं , फिरौन से क्या करूंगा? जिससे वह उनको बरबस निकालेगा { निर्गमन ६.१ }मूसा ने पर्मेश्वर का सन्देश , इस्रायलियों को सुना दिया| निर्गमन ६.९ में लिखा है ---ये बातें मूसा ने इस्रायलियों को कह सुनाईं , परन्तु उन्होंने मन की बेचैनी और दासत्व की क्रूरता के कारण उनकी ना सुनी| क्रिया की प्रतिक्रिया बहुत निराशाजनक थी|दस विपत्तियों का गहन अध्यन करने के पूर्व , निर्गमन १२.१२ को समझना नितांत आवश्यक है| जहाँ पर्मेश्वर कहता है ---मैं उस रात मिस्र के बीच से होकर गुज़रुंगा , और मिस्र देश के क्या मनुष्य और क्या पशु , सबके पहलौठों को मरूँगा ; और मिस्र के सारे देवी देवताओं को भी दण्ड दूंगा , मैं तो यहोवा हूं| दस विपतियां , पर्मेश्वर के ईश्वरत्व को सिद्ध करने का एक साधन हैं|
दस विपत्तियां और उनके परिणाम --- पहली विपत्ति –नील नदी का जल , लहू बनाया जाना ---निर्गमन ७.१७ में मूसा ने फिरौन से कहा –यहोवा यूं कहता है , इससे तू जान लेगा की मैं ही पर्मेश्वर हूं , देख मैं अपनी लाठी को नील नदी के जल पर मारूंगा , और जल लहू बन जायेगा| नील नदी को मिस्र की जीवन रेखा मना जाता है|उस युग में मिस्र की सम्रद्धि का एक मात्र कारण , नील नदी थी| पर्मेश्वर ने सबसे पहला प्रहार मिस्र की जीवन रेखा पर किया| मिस्री नील नदी की पूजा करते थे| हैपी और आइसिस नील नदी की देवियाँ मानी जाती थीं| नील नदी को लहू बना कर पर्मेश्वर ने , फिरौन को सीधा सन्देश दिया| पहला –पर्मेश्वर उसके राज्य में भी कार्य कर सकता है| दूसरा –आर्थिक हानि की सामर्थ| नील नदी , मिस्र के भी लिए जीवन रेखा थी| नील नदी के जल का लहू बन जाना , उनके आर्थिक स्रोतों पर आघात जैसा था| तीसरा –धार्मिक आघात --- यदि आइसिस और हैपी देवी हैं , तो उनको ये चुनौती है की वो , नील नदी के जल को अपनी ताक़त से पुनः जल बना दें| परन्तु ऐसा नहीं हुआ| फिरौन के जादूगरों ने भी , ठीक वैसा ही किया| उन्होंने अपने तंत्र मन्त्र से दूसरे जलाशयों को लहू बना दिया| और पर्मेश्वर ने ऐसा होने दिया
दूसरी विपत्ति ---मेंढकों का पूरे मिस्र पर छा जाना ---निर्गमन ८.२—३ में लिखा है ---यदि तू उन्हें ना जाने देगा तो सुन ,मैं मेंढक भेज कर तेरे सारे देश को हानि पहुँचाने वाला हूं| और नील नदी मेंढकों से भर जाएगी , और तेरे भवन और तेरे बिछौने पर और तेरे कर्मचारियों के घरों और तेरी प्रजा पर और तेरे तंदूर और कठौतियों पर चढ़ जाएंगे| जब हारून ने अपनी लाठी जलाशयों की ओर उठाई तो वैसा ही हुआ| समस्त मिस्र मेंढकों से भर गया| मिस्र के जादूगरों ने भी ठीक वैसा ही किया| हेकेट मिस्रियों का देवता माना जाता था| यह मेंढक के सर वाला देवता था , जिसे जन्म का देवता भी माना जाता था| इस विपत्ति से बचने के लिए निश्चित ही मिस्रियों ने अपने देवता से मिन्नत की होगी| पहले पर्मेश्वर ने हेपी और आइसिस देवियों और अब हेकेट देवता पर आक्रमण किया था| प्रश्न केवल यह था सच्चा ईश्वर कौन है पद ७ में लिखा है –फिरौन ने मूसा को बुला कर , उससे निवेदन किया की , यहोवा से बिनती करो की वह मेंढकों को मिस्र से दूर करे| इसके पूर्व फिरौन ने कहा था , यहोवा कौन है , मैं नहीं जानता| दूसरी विपत्ति का प्रभाव यह हुआ की , फिरौन पर्मेश्वर के सामने झुकने को मज़बूर हो गया| वह जान गया की इस विपत्ति को लाने वाला और उससे बचाने वाला , केवल यहोवा पर्मेश्वर है|
तीसरी विपत्ति ---माटी की धूल से कुटकी बनाया जाना ---निर्गमन ८.१६ में पर्मेश्वर ने मूसा से कहा , हारून को आज्ञा दे की तू अपनी लाठी बढ़ा कर , धूल पर मर जिससे वह मिस्र भर में कुटकीयां बन जाए| धूल से कुछ भी बनाने की शक्ति केवल पर्मेश्वर में है| सबसे पहले पर्मेश्वर ने उत्पत्ति में माटी की धूल से , आदम की राचन की| मिस्र में पर्मेश्वर ने धूल से कुटकीयां बना दीं| यह उसकी समर्थ का प्रमाण था| मिस्रियों के दो और देवता थे ,पहला नाट और दूसरा सेत| इन दोनों को मरुस्थल का देवता माना जाता था| इन दोनों को पर्मेश्वर को चुनौती थी , यदि वे वास्तव में ईश्वर हैं , तो मिस्रियों को बचा लें| निर्गमन ८.१८ में लिखा है –मिस्री जादूगरों ने वैसा ही करना चाहा , परन्तु यह उनकी शक्ति के बाहर था| जादूगरों ने फिरौन से कहा , यह तो पर्मेश्वर के हांथ का काम है| उन्होंने यह नहीं कहा की यह हमारे देवताओं का काम है , लेकिन उन्होंने मान लिया की यह पर्मेश्वर का काम है| और हम अपने तंत्र मन्त्र से उसका सामना नहीं कर सकते| सबसे पहला विश्वास , जादूगरों में पैदा हुआ| अंधकार की ताकतें आज भी काम करती हैं , और पर्मेश्वर की सत्ता को चुनौती देती हैं| प्रेरितों के काम की किताब में भी , ऐसे ही तीन वर्णन मिलते हैं| पहला --प्रेरितों के काम ९. ९—१० में लिखा है –इसके पहले उस शहर में शिमौन नामक एक मनुष्य था , जो जादू टोना करके सामरिया के लोगों को चकित करता और अपने आप को एक बड़ा पुरुष बताता था| छोटे , बड़े सब उसका सम्मान करके कहते थे , यह मनुष्य पर्मेश्वर की वह शक्ति है जो महान कहलाती है| शिमौन ने पर्मेश्वर की सामर्थ के काम देखे, और पद १३ में लिखा है –तब शिमौन ने स्वयं भी विश्वास किया , और बप्तिस्मा लेकर फिलिप्पुस के साथ रहने लगा| दूसरा वर्णन प्रेरितों के काम १३.४—१२ में मिलता है| इलिमास नामक एक यहूदी टोंन्हा और झूठा भविष्यवक्ता , लोगों को विश्वास करने से रोकता था| पद ११ में पौलूस ने इलिमास से कहा , अब देख प्रभू का हांथ तुझपर लगा है , और तू कुछ समय तक अंधा रहेगा , और सूर्य को नहीं देखेगा| तीसरा उदाहरण प्रेरितों के काम १९. १९ में मिलता है , जहाँ इस प्रकार लिखा है – जादू करने वालों में से बहुतेरों ने , अपनी पोथियों इकट्ठी करके सबके सामने जला दीं ; और जब उनकी क़ीमत जोड़ी गई तो , पचास हज़ार चांदी के सिक्कों के बराबर निकली| अन्धकार की ताकतें आज भी , पर्मेश्वर की सामर्थ का सामना नहीं कर पाती हैं| उन्हें पर्मेश्वर के सामने , घुटने टेकने ही पड़ते हैं|
Comments