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Showing posts from December, 2019

क्रूस पर कहे गए यीशु के अन्तिम सात वचन कौन से हैं और उनका क्या अर्थ है?

क्रूस पर कहे गए यीशु के अन्तिम सात वचन कौन से हैं और उनका क्या अर्थ है? प्रश्न: क्रूस पर कहे गए यीशु के अन्तिम सात वचन कौन से हैं और उनका क्या अर्थ है? उत्तर:  यहाँ नीचे वे सात कथन पाए जाते हैं, जिन्हें यीशु मसीह ने क्रूस के ऊपर से बोला था (किसी विशेष व्यवस्था में नहीं दिए गए हैं): (1) मत्ती 27:46 हमें उस नौवें घण्टे के बारे में बताता है, जब यीशु ने ऊँची आवाज में पुकार कर कहा था, "एली, एली, लमा शबक्तनी?" जिसका अर्थ, "हे मेरे परमेश्‍वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया है?" यहाँ पर, यीशु त्यागे जाने की अपनी भावना को व्यक्त कर रहा था जब परमेश्‍वर ने उसके ऊपर संसार के पापों को डाल दिया था — और इस कारण परमेश्‍वर को यीशु की ओर से "मुड जाना" पड़ा था। जब यीशु पाप के भार को महसूस कर रहा था, वह शाश्‍वतकाल से लेकर अब तक केवल इसी समय में परमेश्‍वर से पृथकता का अनुभव कर रहा था। यह साथ ही भजन संहिता 22:1 के भविष्यद्वाणी किए हुए कथन की पूर्णता थी।  (2) "हे पिता, इन्हें क्षमा कर क्योंकि यह नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं" (लूका 23:46)। यीशु को क्रूसित करने वाले पू...
प्रभु यीशु के अमर वचन ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाने के लिए उनके विरोधी उन्हें गुलगुता नामक स्थान पर ले गए। वहां उन्हें सलीब पर टांग दिया गया तथा पिलातुस ने एक दोष पत्र जिस पर लिखा था 'यीशु नासरी यहूदियों का राजा' ईसा के क्रूस पर लगा दिया। इस समय दोपहर के लगभग 12 बजे थे, अपनी मृत्यु के पूर्व के तीन घंटों में यीशु मसीह ने क्रूस पर जो सात अमरवाणियां कही थीं उन पर चिंतन करना आज अत्यावश्यक है।  पहली वाणी : 'हे पिता इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।'  दूसरी वाणी : 'मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।' तीसरी वाणी : 'हे नारी देख, तेरा पुत्र। देख, तेरी माता।' चौथी वाणी : 'हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?' पांचवीं वाणी : 'मैं प्यासा हूं' छठी वाणी : 'पूरा हुआ।' पिता परमेश्वर ने अपने पुत्र यीशु मसीह को जिस कार्य को करने पृथ्वी पर भेजा था, उसे उन्होंने पूर्ण किया। शैतान भी उन्हें पराजित नहीं कर सका। प्राणों की...
0 Things the Holy Spirit Does in Your Life What is the role of the Holy Spirit?  1.      The Spirit convicts the world of sin, righteousness, and judgment (John 16:8). 2.      The Spirit guides us into all truth (John 16:13). 3.      The Spirit regenerates us (John 3:5-8; Titus 3:5). 4.      The Spirit glorifies and testifies of Christ (John 15:26; 16:14). 5.      The Spirit reveals Christ to us and in us (John 16:14-15). 6.      The Spirit leads us (Rom. 8:14; Gal. 5:18; Matt. 4:1; Luke 4:1). 7.      The Spirit sanctifies us (2 Thess. 2:13; 1 Pet. 1:2; Rom. 5:16). 8.      The Spirit empowers us (Luke 4:14; 24:49; Rom. 15:19; Acts 1:8). 9.      The Spirit fills us (Eph. 5:18; Acts 2:4; 4:8, 31; 9:17). 1 0.    The Spirit teaches us to pray (Rom. 8:26-27; Jude 1:20). 11.    The Spirit bears witness in us that ...