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Chanakya Niti in Hindi Tenth Chapter (चाणक्य नीति – दसवा अध्याय) julay-- 25 by pawan yadaw..

Chanakya Niti in Hindi Tenth Chapter (चाणक्य नीति – दसवा अध्याय)  julay-- 25 by pawan yadaw..


Chanakya (चाणक्य)
Chanakya (चाणक्य)

Chanakya Neeti – Tenth Chapter  (चाणक्य नीति – दसवा अध्याय)

1: निर्धन व्यक्ति हीन अर्थात छोटा नहीं है, धनवान वही है जो अपने निश्चय पर दृढ़ है, परन्तु विदया रूपी धन से जो हीन है, वह सभी चीजो से हीन है।
2: अच्छी तरह देखकर पैर रखना चाहिए, कपड़े से छानकर पानी पीना चाहिए, शास्त्र से (व्याकरण से) शुद्ध करके वचन बोलना चाहिए और मन में विचार करके कार्य करना चाहिए।

3. विदयार्थी को यदि सुख की इच्छा है और वह परिश्रम करना नहीं चाहता तो उसे विदया प्राप्त करने की इच्छा का त्याग कर देना चाहिए। यदि वह विदया चाहता है तो उसे सुख-सुविधाओं का त्याग करना होगा क्योंकि सुख चाहने वाला विदया प्राप्त नहीं कर सकता। दूसरी ओर विदया प्राप्त करने वालो को आराम नहीं मिल सकता।
4: कवि लोग क्या नहीं देखते ? स्त्रियां क्या नहीं कर सकती ? मदिरा पीने वाले क्या-क्या नहीं बकते ? कौवे क्या-क्या नहीं खाते ?
5: भाग्य की शक्ति अत्यंत प्रबल है। वह पल में निर्धन को राजा और राजा को निर्धन बना देती है। वह धनी को निर्धन और निर्धन को धनी बना देती है।
6: लोभियों का शत्रु भिखारी है, मूर्खो का शत्रु ज्ञानी है, व्यभिचारिणी स्त्री का शत्रु उसका पति है और चोरो का शत्रु चंद्रमा है।
7: जिसके पास न विध्या है, न तप है, न दान है और न धर्म है, वह इस मृत्यु लोक में पृथ्वी पर भार स्वरूप मनुष्य रूपी मृगों के समान घूम रहा है। वास्तव में ऐसे व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है। वह समाज के किसी काम का नहीं है।
8: शून्य ह्रदय पर कोई उपदेश लागू नहीं होता। जैसे मलयाचल के सम्बन्ध से बांस चंदन का वृक्ष नहीं बनता।
9: जिनको स्वयं बुद्धि नहीं है, शास्त्र उनके लिए क्या कर सकता है? जैसे अंधे के लिए दर्पण का क्या महत्व है ?
10: इस पृथ्वी पर दुर्जन व्यक्ति को सज्जन बनाने का कोई उपाय नहीं है, जैसे सैकड़ो बार धोने के उपरांत भी गुदा-स्थान शुद्ध इन्द्री नहीं बन सकता।
11: अपनी आत्मा से द्वेष करने से मनुष्य की मृत्यु हो जाती है—-दुसरो से अर्थात शत्रु से द्वेष के कारण धन का नाश और राजा से द्वेष करने से अपना सर्वनाश हो जाता है, किन्तु ब्राह्मण से द्वेष करने से सम्पूर्ण कुल ही का नाश हो जाता है।
12: बड़े-बड़े हाथियों और बाघों वाले वन में वृक्ष का कोट रूपी घर अच्छा है, पके फलों को खाना, जल का पीना,तिनको पर सोना,पेड़ो की छाल पहनना उत्तम है, परन्तु अपने भाई-बंधुओ के मध्य निर्धन होकर जीना अच्छा नहीं है।
13: ब्राह्मण वृक्ष है, संध्या उसकी जड़ है, वेद शाखाए है, धर्म तथा कर्म पत्ते है इसीलिए ब्राह्मण का कर्तव्य है कि संध्या की रक्षा करे क्योंकि जड़ के कट जाने से पेड़ के पत्ते व् शाखाए नहीं रहती।
14: जिसकी माता लक्ष्मी है, पिता विष्णु है, भाई-बंधु विष्णु के भक्त है, उनके लिए तीनो लोक ही अपने देश है।
15: अनेक रंग और रूपों वाले पक्षी सायं काल एक वृक्ष पर आकर बैठते है और प्रातःकाल दसों दशाओं में उड़ जाते है। ऐसे ही बंधु-बांधव एक परिवार में मिलते है और बिछुड़ जाते है। इस विषय में शौक कैसा ?
16: जो बुद्धिमान है, वही बलवान है, बुद्धिहीन के पास शक्ति नहीं होती। जैसे जंगले में सबसे अधिक बलवान होने पर भी सिंह मतवाला खरगोश के द्वारा मारा जाता है।
17: यदि भगवान जगत के पालनकर्ता है तो हमें जीने की क्या चिंता है? यदि वे रक्षक न होते तो माता के स्तनों से दूध क्यों निकलता? यही बार-बार सोचकर हे लक्ष्मीपति ! अर्थात विष्णु ! मै आपके चरण-कमल में सेवा हेतु समय व्यतीत करना चाहता हूं।
18: यद्पि मेरी बुद्धि देववाणी (संस्कृत) में श्रेष्ठ है, तब भी मै दूसरी भाषा का लालची हूं। जैसे अमृत पीने पर भी देवताओं की इच्छा स्वर्ग की अप्सराओं के ओष्ट रूपी मद्ध  को पीने की बनी रहती है।
19: अन्न की अपेक्षा उसके चूर्ण अर्थात पिसे हुए आटे में दस गुना अधिक शक्ति होती है। दूध में आटे से भी दस गुना अधिक शक्ति होती है। मांस में दूध से भी आठ गुना अधिक शक्ति होती है। और घी में मांस से भी दस गुना अधिक बल है।
20: साग खाने से रोग बढ़ते है, दूध से शरीर बलवान होता है, घी से वीर्य (शक्ति) बढ़ता है और मांस खाने से मांस ही बढ़ता है।

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